मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। उच्चतम न्यायालय द्वारा चुनाव आयोग से याचिका पर सुनवाई के दौरान जवाब मांगा है। इसमें बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की विधान परिषद की सदस्यता समाप्त करने की मांग की गई है। याचिका में नीतीश कुमार के खिलाफ एक लंबित आपराधिक मामले से संबंधित जानकारी को कथित तौर पर छिपाये जाने का आरोप लगाया गया था। इस बावत उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग से तय समय के अंदर रोपोर्ट मांगा है।
आपको बता दे कि सूत्रों से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति ए० एम० खानविलकर तथा न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने सोमवार को चुनाव आयोग से चार हफ्तों के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। यह जनहित याचिका अधिवक्ता एम० एल० शर्मा ने दाखिल किया था। इससे पहले शीर्ष अदालत ने शर्मा से संशोधित याचिका की एक प्रति चुनाव आयोग को देने को कहा था। कल के फैसले के बाद चुनाव आयोग के रिपोर्ट के आधार पर अदालत आपाना फैसला सुनाएगी। याचिका दायर करने वाले का कहना है कि नीतीश कुमार की सदस्यता जानी तय है तथा सीएम की कुर्सी भी जा सकती है।
जैसा कि आप सभी जानते हैं याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया गया है। कहा है कि जदयू नेता नीतीश कुमार पर एक आपराधिक मामला चल रहा है। जिसमें नीतीश कुमार पर कांग्रेस के स्थानीय नेता सीताराम सिंह की हत्या और चार अन्य को घायल करने का आरोप है। मामला वर्ष 1991 में लोकसभा उप चुनाव के वक्त का है। याचिका में अनुरोध किया गया है कि इस मामले में सीबीआई को नीतीश के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया जाए।
याचिका पर सुनवाई करते हुए माननीय उच्चतम न्यायालय ने चुनाव आयोग को तय समय के अंदर तथ्यों के साथ कागजात प्रस्तुत करना है। जानकार बता रहे है कि अगर याचिका के अनुसार तथ्य सही पाए गए तो नीतीश कुमार की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। नीतीश कुमार को अपनी कुर्सी के साथ साथ विधान परिषद की सदस्यता तो जाएगी ही जेल भी जाना पड़ सकता है।