केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने लोकसभा में तीन तलाक के खिलाफ दंड के प्रावधान वाला बिल (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) आज संसद में पेश किया गया। इस बिल में प्रावधान है कि जिसके मुताबिक अगर कोई अपनी पत्नी को फौरन तीन तलाक किसी भी माध्यम से देगा तो तीन वर्ष तक की कैद हो सकती है। लोकसभा में बिल पेश होने के बाद इसका राष्ट्रीय जनता दल और बीजू जनता दल समेत कई लोगों ने विरोध किया।
एआईएमआईएम ने असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि यह बिल लोगों के मौलिक अधिकार का हनन करता है जबकि बीजू जनता दल के सांसद भर्तुहारी मेहताब ने कहा कि इस बिल के अंदर कई सारी विसंगतियां मौजूद है।
आइये जानते हैं बिल से जुड़ी 10 बातें-
1- यह एक महत्वपूर्ण बिल है जिससे फौरन तीन तलाक देने के खिलाफ सज़ा का प्रावधान होगा जो मुस्लिम पुरुषों को एक साथ तीन तलाक कहने से रोकता है। ऐसे बहुत से मामले हैं जिनमें मुस्लिम महिलाओं को फोन या सिर्फ एसएमएस के जरिए तीन तलाक दे दिया गया है।
2- इस बिल में तीन तलाक को दंडनीय अपराध का प्रस्ताव है। ये बिल तीन तलाक को संवैधानिक नैतिकता और लैंगिक समानता के खिलाफ मानता है। इस बिल के प्रावधान के मुताबिक, अगर कोई इस्लाम धर्म माननेवाला फौनर तीन तलाक देता है यह दंडनीय होगा और उसके लिए उसे तीन साल तक की जेल हो सकती है।
3- इस बिल को गृहमंत्री राजनाथ सिंह की अध्यक्षता में अंतर-मंत्रिस्तरीय समूह ने तैयार किया है। जिसमें तीन तलाक यानि तलाक-ए-बिद्दत वो चाहे किसी भी रूप में हो जैसे- बोलकर, लिखित या फिर इलैक्टोनिक (एमएसएस या व्हाट्स एप), वह अवैध होगा। उसके लिए पति को तीन साल की कैद का प्रावधान है। इसे केन्द्रीय मंत्रीपरिषद की ओर से पहले ही मंजूरी दी जा चुका है।
4- बिल के प्रावधान के मुताबिक, पति के ऊपर जुर्माना भी लगाया जा सकता है। लेकिन, कितना जुर्माना हो यह फैसला केस की सुनवाई के दौरान मजिस्ट्रेट की ओर से सुनाया जाएगा।
5- एक तरफ जहां बिल को सदन के पटल पर रखा जा रहा है तो वहीं दूसरी तरफ सुप्रीम कोर्ट की तरफ से तलाक-ए- बिद्दत को खत्म करने के बाद भी इस तरह से तलाक जारी है।
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6- प्रस्तावित कानून सिर्फ फौरन तीन तलाक पर ही लागू होगा और इसमें पीड़ित को यह अधिकार होगा कि वह मजिस्ट्रेट से गुजारिश कर अपने लिए और अपने नाबालिग बच्चे के लिए गुजारा भत्ते की मांग करे। इसके अलावा महिला मजिस्ट्रेट से अपना नाबालिग बच्चे को अपने पास रखने के लिए भी दरख्वास्त कर सकती है। अंतिम फैसला मजिस्ट्रेट का ही होगा।
7- इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने तीन तलाक पर सुनवाई के दौरान इसे असंवैधानिक करार दिया था। तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश जे.एस. खेहर ने केन्द्र सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह इस बारे में एक कानून लेकर आए।
8- तीन तलाक पर सुप्रीम कोर्ट के आए आदेश का देशभर में स्वागत किया गया था। खासकर, मुस्लिम महिलाओं ने इस जबरदस्त तरीके से समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें अपने परिवार में लगातार सफर करना पड़ रहा था।
9- हालांकि, फौरन तीन तलाक को आपराधिक बनाने से सभी खुश नहीं है। कुछ मुस्लिम विद्वानों और संगठनों ने इसका विरोध किया है। इसके साथ ही, वे इसे मुस्लिम पर्सनल कानून में दखल मान रहे हैं।
10- ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) ने इस बिल का विरोध किया है। बोर्ड का कहना है कि यह बिल शरिया कानून के खिलाफ है और अगर यह कानून बनता है तो कई परिवार तबाही के कगार पर आ जाएंगे।