वैज्ञानिक एवं औद्यौगिक अनुसंधान परिषद (सीएसआईआर) के वैज्ञानिक गरीब लोगों को आवास उपलब्ध कराने के लिए एक लाख रुपये कीमत का घर विकसित करने में जुटे हैं। इस घर की खूबी यह भी होगी कि इसे सामान की तरह ही एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जा सकेगा।सीएसआईआर की भौतिक विज्ञान प्रयोगशाला (एनपीएल) के निदेशक डॉक्टर डीके अस्वाल ने बताया कि राष्ट्रीय भवन अनुसंधान संस्थान रुड़की के साथ मिलकर इस प्रोजेक्ट पर कार्य शुरू किया गया है। हमारी कोशिश है कि करीब 350 वर्ग फीट का घर गरीबों को एक लाख रुपये के भीतर उपलब्ध हो जाए। इस घर में सीमेंट, ईट, रेत का इस्तेमाल नहीं होगा। इसमें प्लास्टिक की ईटें, टाइल और पिलर लगेंगे जिसकी तकनीक भी एनपीएल ने विकसित की है।अस्वाल के अनुसार एनपीएल ने प्लास्टिक के कचरे को प्रोसेस करके उसमें कई किस्म की राख और केमिकल मिलाकर प्लास्टिक की टाइल्स बनाई हैं जो कई रूपों में हैं। वे ईट के रूप में भी हैं। वे पिलर के रूप में भी हैं। छत के रूप में भी इन टाइलों को बड़े आकार में विकसित किया गया है। यह तकनीकी एनपीएल ने चार कंपनियों को सौंपी है और कुछ कंपनियां इन उत्पादों को बाजार में ला चुकी हैं।
प्लास्टिक से बनी ये टाइलें कभी न टूटने वाली और अग्निरोधी भी हैं। इनसे बनने वाला घर पूरी तरह भूकंप रोधी होगा। उसे इस तरह से जमीन में फिट किया जाएगा कि तूफान में भी वह सुरक्षित रहेगा।इस तकनीक से बने मकान में लगी सामग्री को खोला जा सकेगा। यदि कोई किसी स्थान को छोड़कर जाना चाहता है तो वह इस घर को अपने साथ ले जा सकता है। अस्वाल के अनुसार अस्थाई घरों, झोपड़ पट्टी में रहने वालों के लिए यह तकनीक वरदान साबित होगी। दूसरे भूकंप संभावित क्षेत्रों तथा पर्वतीय इलाकों जहां तेज हवाएं चलती हैं या सामान की ढुलाई संभव नहीं है वहां भी ये घर उपयोगी साबित होंगे।डॉक्टर डीके अस्वाल ने उम्मीद जताई कि इस प्रोजेक्ट से एक फायदा यह होगा कि लोग प्लास्टिक के कचरे को फेंकने की बजाय बेचना शुरू करेंगे। इससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या भी खत्म होगी। उन्होंने कहा कि प्रोजेक्ट पूरा होने के बाद सीएसआई तकनीक के प्रदर्शन के लिए कुछ स्थानों पर ऐसे घर बनाकर प्रदर्शित करेगा।