नई दिल्ली। अयोध्या ढांचा विध्वंस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती सहित 13 नेताओं पर आपराधिक साजिश का मुकदमा चलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को इस मामले पर सुनवाई के बाद यह फैसला सुनाया। कल्याण सिंह के खिलाफ फिलहाल कोई केस नहीं चलेगा। कल्याण सिंह गवर्नर के पद पर हैं, इसलिए सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उन पर मुकदमा चलाने का आदेश नहीं दिया है। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने मामले से जुड़े दो मुकदमे एक साथ चलाने के निर्देश दिए हैं। इनमें से एक मामला लखनऊ में है, दूसरा रायबरेली में। कोर्ट ने कहा है कि दोनों मामलों की साझा सुनवाई रोजाना लखनऊ की कोर्ट में हो। साथ ही कोर्ट ने दो साल के भीतर दोनों मामले निपटाने का आदेश दिया है। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया है कि फैसला आने तक जज का ट्रांसफर नहीं होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि रायबरेली से मामला चार हफ्ते के भीतर लखनऊ की कोर्ट में ट्रांसफर हो जाना चाहिए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह पर अभी कोई मामला नहीं चलेगा। दरअसल, कल्याण सिंह को संविधान में मिली छूट का लाभ मिला है। बता दें कि आडवाणी और जोशी सहित भाजपा के 8 नेताओं पर रायबरेली की अदालत मे मुक़दमा चल रहा है, लेकिन उसमें आपराधिक साज़िश के आरोप नहीं हैं। लेकिन अब कोर्ट ने आडवाणी समेत 10 लोगों पर आपराधिक मामला चलाने का आदेश दे दिया है। इससे इन आडवाणी और जोशी समेत इन लोगों की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। 6 दिसंबर 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के दो मामलों पर ट्रायल चल रहा है। नेताओं को आरोपमुक्त करने के 2001 के फैसले को सीबीआई ने तो सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी थी, लेकिन तीसरे पक्षकार असलम भूरे ने फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में इसके बाद भूरे की पुनर्विचार और क्यूरेटिव याचिका भी खारिज हो गई थी। इस तरह वह आदेश अंतिम और बाध्यकारी हो चुका है। सीबीआइ ने इस मामले में 20 मई 2010 के आदेश को चुनौती दी है जिसमें हाईकोर्ट ने 2001 के फैसले पर मुहर लगा दी थी। वैसे बता दें कि अयोध्या में विवादित ढांचा ढहने के आरोपों से 17 साल पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, उमा भारती, कल्याण सिंह आदि का आरोपमुक्त होना महज किस्मत की ही बात कही जाएगी, क्योंकि जिस कानूनी तकनीकी खामी के आधार पर वे आरोप मुक्त हुए थे वह तो वास्तव में थी ही नहीं। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि अभियुक्तों को इस तकनीकी आधार पर आरोपमुक्त किया गया कि रायबरेली के मुकदमें को लखनऊ की अदालत स्थानांरित करते समय हाईकोर्ट से परामर्श नहीं किया गया था लेकिन इसकी जरूरत ही नहीं थी क्योंकि यूपी में संबंधित कानून 1976 में ही संशोधित हो गया है। संशोधन के बाद हाईकोर्ट से परामर्श जरूरी नहीं रह गया है।
सीबीआई की दलील
सीबीआई ने आरोपमुक्त हुए 21 लोगों पर साजिश में मुकदमा चलाने की मांग करते हुए कहा कि हाईकोर्ट ने ये कह कर तकनीकी आधार पर आरोप निरस्त किये थे कि एफआइआर संख्या 198 (8 नेताओं का मामला) को रायबरेली से लखनऊ ट्रांसफर करने की अधिसूचना के समय हाईकोर्ट से अनुमति नहीं ली गई। लेकिन हाईकोर्ट ने ये भी कहा था कि प्रथमदृष्टया अभियुक्तों पर मामला बनता है। उसने संयुक्त आरोपपत्र को भी ठीक कहा था। सीबीआई ने कहा कि नेताओं पर रायबरेली में वापस मुकदमा चलने लगा लेकिन वहां उन पर साजिश के आरोप नहीं हैं। परन्तु बाकी 13 तो पूरी तरह छूट गए उन पर कहीं मुकदमा नहीं चल रहा।
नेताओं की दलील
नेताओं के वकील ने कहा कि मुकदमा रायबरेली से लखनऊ स्थानांतरित नहीं हो सकता न ही उन पर साजिश का केस चलाया जा सकता है। कोर्ट अनुच्छेद 142 की शक्तियों का इस्तेमाल करके भी ऐसा नहीं कर सकता क्योंकि इससे उनके मौलिक अधिकारों का हनन होता है। अगर मुकदमा लखनऊ स्थानांतरित हुआ तो रोजाना सुनवाई के बावजूद 2 साल मे नहीं निपटेगा क्योंकि नये सिरे से सुनवाई होगी और 800 गवाहों से जिरह होगी। सीबीआई के पास अगर साजिश के सबूत हैं तो वो रायबरेली में पूरक आरोपपत्र दाखिल कर सकती है। साथ ही कहा था कि असलम भूरे केस में कोर्ट का फैसला अंतिम हो चुका है जिसमें कोर्ट ने रायबरेली में मुकदमा चलाने की बात कही है। ये फैसला सभी पर बाध्यकारी है।