नई दिल्ली। अगर आप फोन पर कॉल ड्रॉप होने से परेशान हैं, तो आपके लिए अच्छी खबर है। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने कॉल ड्रॉप पर अंकुश के लिए कड़े निर्देश जारी किए हैं। जिससे संभवत: कॉल ड्रॉप में कमी आएगी। ट्राई के नए कड़े नियमों के अनुसार यदि कोई ऑपरेटर लगातार तीन तिमाहियों कॉल ड्रॉप के लिए तय मानकों पर खरा नहीं उतरता है, तो उस पर 10 लाख रुपये तक का जुर्माना लगाया जाएगा। साथ ही कॉल ड्रॉप प्रतिशत को अब पूरे सर्किल के औसत के बजाय मोबाइल टावर के स्तर पर मापा जाएगा। यह नियम 1 अक्टूबर से लागू होंगे।
1.5 गुना बढ़ेगी जुर्माने की राशि
ट्राई के चेयरमैन आरएस शर्मा ने कहा कि कॉल ड्रॉप मामले में 1 से 5 लाख रुपये तक के वित्तीय दंड का प्रावधान किया है। यह ग्रेडेड जुर्माना प्रणाली है, जो किसी नेटवर्क के प्रदर्शन पर निर्भर करेगी। बता दें कि फिलहाल किसी सर्किल में निर्धारित से ज्यादा कॉल ड्रॉप होने पर प्रति तिमाही एक लाख रुपये का जुर्माने होता है। वहीं लगातार होने पर यह तीसरी तिमाही में जुर्माना राशि 2 लाख रुपये तक हो जाती थी। वहीं ट्राई के कार्यवाहक सचिव एसके गुप्ता ने बताया कि यदि कोई ऑपरेटर लगातार तिमाहियों में कॉल ड्रॉप के मानकों पर खरा नहीं उतरता है तो उस पर जुर्माने की राशि को 1.5 गुना तक बढ़ा दिया जाएगा। जिसके बाद यह तीसरे महीने में दौगुनी कर दी जाएगी। लेकिन इसकी सीमा 10 लाख रुपये तक ही रहेगी। उन्होंने कहा कि वैसे तो कॉल ड्रॉप को मापने में कई चीजें छिपी रह जाती है। लेकिन नए नियमों के आने से यह परेशानी खत्म हो जाएगी।
अब नहीं चलेगा कोई बहाना
ट्राई चेयरमैन ने कहा कि पहले नियमों से टावर का काम न करना यार फिर किसी खास जगह पर नेटवर्क की दिक्कत में सुधार की कोई व्यवस्था नहीं थी। जिसकी वजह से टेलिकॉम कंपनियां पूरे सर्किल में कॉल ड्रॉप के औसत के आधार पर जुर्माने से बच निकलती थीं। लेकिन नए नियमों के बाद, अब टावर एरिया के अनुसार कॉल ड्रॉप का आकलन होने से उनका बचना संभव नहीं होगा। अब कंपनियां अस्थायी तकनीकी या भौगोलिक कारणों का बहाना नहीं बना सकेंगी।
2 प्रतिशत की कॉल ड्रॉप माफ
नए नियमों के बाद किसी भी दूरसंचार सर्कल में 90 प्रतिशत मोबाइल साइटें, 90 प्रतिशत समय तक 98 प्रतिशत तक कॉल्स को सुगम तरीके से संचालित करना जरूरी होगा। जिसका मतलब कुल कॉल का सिर्फ 2 प्रतिशत की कॉल ड्रॉप बख्शा जाएगा। अगर इससे ज्यादा कॉल ड्रॉप होने पर जुर्माना लगेगा। वहीं अगर कोई खराब स्थिति होती है, तो मोबाइल टावरों पर कॉल ड्रॉप की दर तीन प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। ट्राई ने आरएलटी (रेडियो लिंक्ड टाइम आउट प्रौद्योगिकी ) तकनीक के लिए भी मानक तय किए हैं। जिसके जरिए कॉल ड्रॉप प्रतिशत को कम दिखाने वाली टेलीकॉम कंपनियों की चालाकी को पकड़ा जा सकेगा। बता दें कि आरएलटी वह तकनीक है जिसका इस्तेमाल टेलीकॉम कंपनियां एक टावर से दूसरे टावर के बीच कॉल को कनेक्ट करने के लिए करती हैं। अभी आरएलटी के लिए 4-64 तक का मानक है। परंतु नए नियमों के तहत अब यदि कोई आपरेटर 48 से ऊपर के मानक पर जाएगा तो उसे इसका कारण ट्राई को स्पष्ट करना पड़ेगा।