मंत्रिपरिषद् गठन के बाद पहली कैबिनेट मीटिंग से एक शाम पहले नीतीश कुमार का अहम फैसला सोमवार को सामने आया। यह फैसला विधानसभा अध्यक्ष विजय कुमार सिन्हा की ओर से आया और इसने साफ कर दिया कि विधानसभा चुनाव परिणाम की तरह सरकार में भाजपा भारी है और सबसे बड़े दल राजद के सामने जदयू कमतर है। इस फैसले के तहत विधानसभा की 7 समितियां भाजपा के पास आ गई हैं, जबकि 6 राजद और 5 जदयू के पास रही हैं। 2 कांग्रेस और 1-1 हम-वामदल के पास रही हैं। समितियों में 11 पूर्व मंत्रियों के नाम हैं, यानी अब मंत्रिमंडल विस्तार होगा तो इनमें से किसी के लिए मंत्रिमंडल में प्रवेश की संभावना नहीं रहेगी।
चिट्ठी-पत्री के बाद अब तेज प्रताप को भी पद
भाजपा के पास स्पीकर पद पहले से है। पिछले 10 दिनों से इन समितियों के लिए भाजपाई स्पीकर विजय कुमार सिन्हा और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बीच कड़ी चिट्ठी-पत्री चल रही थी। उस कंट्रोवर्सी का रिजल्ट भी सोमवार को सामने आ गया, जब राजद को मिलीं छह समितियों में से एक का सभापति लालू यादव के बड़े पुत्र तेज प्रताप यादव को बनाया गया।
11 पूर्व मंत्री इसमें शामिल, नहीं बनेंगे मंत्री
विधानसभा में समितियों में जिन नामों को लिया गया है, उससे यह तय हो गया है कि उन नेताओं को अगले मंत्रिमंडल के विस्तार में नहीं रखा जाएगा। भाजपा ने पूर्व मंत्री नंदकिशोर यादव, डॉ. प्रेम कुमार, रामनारायण मंडल, कृष्ण कुमार ऋषि, विनोद नारायण झा और राम प्रवेश राय को समितियों का सभापति बनाकर इनके लिए मंत्रिमंडल का दरवाजा बंद कर दिया है। अब इन नेताओं को अगले विस्तार में मंत्री नहीं बनाया जाएगा। वहीं, जदयू ने ऐसे 5 नेताओं- नरेंद्र नारायण यादव, हरिनारायण सिंह, दामोदर रावत, अमरेंद्र कुमार पांडे और शशि भूषण हजारी के लिए मंत्रिमंडल का दरवाजा बंद कर दिया है।
कुछ नेताओं को मिले पद अब चर्चा में रहेंगे
विधानसभा में समितियों की जिम्मेदारी उन नेताओं को दी जाती है, जो गंभीरता के साथ सभापति पद का निर्वहन करते हैं। अमूमन लोक लेखा समिति की जिम्मेदारी विपक्ष के पास ही रहती है और इस बार भी राजद के सुरेंद्र प्रसाद यादव को इस समिति का सभापति बनाया गया है। वहीं, लालू यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को गैर सरकारी विधेयक एवं संकल्प का सभापति बनाया गया है। जदयू के बाहुबली विधायक अमरेंद्र कुमार पांडे को प्रश्न एवं ध्यानाकर्षण समिति का सभापति बनाया गया है।
सभापति या सदस्य बनने से रुतबा-भत्ता बढ़ता है
ऐसी समितियों के सभापति या सदस्य बनने से विधायकों की सुविधा बढ़ जाती है। समितियों सभापति और सदस्यों को प्रतिदिन 2000 रुपए का दैनिक भत्ता मिलता है। समितियों का सभापति पद विधायकों की संख्या के अनुपात में पार्टियों को आंवटित किया जाता है, जबकि सदस्य के रूप में समिति में सभी पार्टियों को प्रतिनिधित्व देने की परंपरा रही है। विभिन्न पार्टियों की ओर से सभापतियों के नामों की सिफारिश के आलोक में विधानसभा अध्यक्ष सभापति के गठन की अधिसूचना जारी करते हैं। इसके बाद ही दैनिक भत्ता के रूप में प्रतिदिन दो हजार रुपए विधायकों को मिलने की शुरुआत होती है। जिन विधायकों को यह पद मिला है, अब इनकी गाड़ियों पर “सदस्य, विधानसभा” की जगह “सभापति, ……समिति, बिहार विधानसभा” का बोर्ड चमकने लगेगा।
लोक लेखा | सुरेंद्र प्रसाद यादव | राजद |
प्राक्कलन | नंद किशोर यादव | भाजपा |
सरकारी उपक्रमों संबंधी | हरि नारायण सिंह | जदयू |
याचिका | प्रेम कुमार | भाजपा |
SC/ST कल्याण | जीतन राम मांझी | हम |
आचार | राम नारायण मंडल | भाजपा |
जिला परिषद एवं पंचायती राज | नरेंद्र नारायण यादव | जदयू |
राजकीय आश्वासन | दामोदर रावत | जदयू |
बिहार विरासत विकास | भाई वीरेंद्र | राजद |
प्रत्यायुक्त विधान | अजीत शर्मा | कांग्रेस |
निवेदन | विनोद नारायण झा | भाजपा |
पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण | राम प्रवेश राय | भाजपा |
महिला एवं बाल विकास | अरुणा देवी | भाजपा |
कृषि उद्योग विकास | कृष्ण कुमार ऋषि | भाजपा |
प्रश्न एवं ध्यानाकर्षण | अमरेंद्र कुमार पांडेय | जदयू |
गैर सरकारी विधेयक एवं संकल्प | तेज प्रताप यादव | राजद |
पुस्तकालय | सुदामा प्रसाद | माले |
पर्यटन उद्योग संबंधी | अनिता देवी | राजद |
आंतरिक संसाधनन एवं केंद्रीय सहायता | शमीम अहमद | राजद |
शून्य काल | चंद्रहास चौपाल | राजद |
अल्पसंख्यक कल्याण | मो. अफाक आलम | कांग्रेस |
आवास | शशि भूषण हजारी | जदयू |