इस मकर संक्रांति पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीी भागलपुर की कतरनी चूड़ा खाएंगे। जिलाधिकारी के निर्देशानुसार जिला कृषि कार्यालय से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री सहित 200 विशिष्ट लोगों के लिए 200 पैकेट कतरनी चूड़ा भेजने की तैयारी की जा रही है। पैकिंग की प्रक्रिया नौ जनवरी को पूरी हो गई। खास यह कि जैविक विधि से उपजा कतरनी धान का चूड़ा बनवाया गया है।
सुल्तानगंज प्रखंड के आभा रतनपुर निवासी राणा सूर्य प्रताप सिंह के खेतों में उपजा कतरनी धान से चूड़ा बनवाया गया है। इसकी खेती बीएयू के वैज्ञानिकों की सलाह पर की गई है। जिस समिति ने कतरनी चूड़ा के सैम्पल का चयन किया, उसमें प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी के अलावा जिला उद्यान पदाधिकारी विकास कुमार, बीएयू के वैज्ञानिक डॉ. शंभू प्रसाद, डॉ. मंकेश कुमार और आत्मा के उप परियोजना निदेशक प्रभात कुमार सिंह शामिल थे।
कृषि पदाधिकारी ने बताया कि जर्दालू की तर्ज पर इस बार कतरनी धान से बना चूड़ा भी विशिष्ट हस्तियों को भेजा जाएगा। पहले दिल्ली की विशिष्ट हस्तियों को संदेश भेजा जा रहा है। इसके बाद पटना भी भेजा जाएगा। उन्होंने बताया कि बैठक में सैम्पल चयन कर लिया गया और 9 जनवरी को पैकिंग करा ली जाएगी। एक -एक किलो चूड़ा का 200 पैकेट बनवाया जा रहा है। दिल्ली में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, विभिन्न विभागों के मंत्री सहित 200 लोगों के लिए यह संदेश होगा। प्रभारी जिला कृषि पदाधिकारी ने बताया कि कई जगहों से सैम्पल मंगाये गए थे जिनमें से आभा रतनपुर के किसान का सैम्पल चयन किया गया है। कतरनी भागलपुर की विशिष्ट पहचान है।
संदेश है कतरनी
जिन कुछ खास विशष्टिताओं के कारण भागलपुर या अंग प्रदेश की पहचान देश विदेश में है उसमें कतरनी चावल और चूड़ा खास है। दुधिया रंग की छोटी-छोटी मोतियों से दाने देखने में जितनी सुंदर हैं उतनी ही सुगंधित। भागलपुर की मंडी से कतरनी चूड़ा और चावल दिल्ली, बनारस, पटना, लखनऊ सहित दक्षिण भारत के कई शहरों में भी जाता। मकर संक्रांति में अंग क्षेत्र की कतरनी बिहार का पसंदीदा सौगात माना जाता है।
मगध सम्राट के लिए भेजी जाती थी कतरनी
अंग क्षेत्र की कतरनी की खुशबू की चर्चा रामायण, बौद्ध ग्रंथ और इतिहास की किताबों में भी है। इतिहासकारों की मानें तो कतरनी मगध समग्राट की थाली में भी परोसी जाती थी। अंग जनपद की विशिष्टताओं पर किताब लिखने वाले पूर्व जनसंपर्क अधिकारी शिव शंकर सिंह पारिजात बताते हैं कि प्रसिद्ध इतिहासकार एनएल डे ने बंगाल एशियाटिक सोसायटी के जर्नल में में अंग पर एक लेख लिखा है जिसमें कहा है यहां एक खास प्रकार के चावल की खेती थी थी जिसकी खुशबू ऐसी थी कि इसे मगध सम्राट बिम्बिसार के लिए अंग जनपद से ले जायी जाती थी।